Sunday, May 12, 2013

I don't know the Poet name of this Poem. But when read this poem i really liked. A mother do so many things for his children.


जीवन के 
इक्कीस वर्ष बाद, माँ 
जानी मैंने 
तुम्हारी पीड़ा 
जब अपना अंश 
अपनी बिटिया 
अपनी बाँहों में पाई मैंने। 

मेरे रोने पर 
तुम छाती से लगा लेती होगी मुझे, 
यह तो मुझे ज्ञात नहीं 
पर घुटने-कोहनी 
जब छिल जाते थे गिरने पर 
याद है मुझे 
तुम्हारे चेहरे की वो पीड़ा। 

तुम्हारी छाती का दर्द 
उतर आया मेरे भी भीतर, 
बेटी कष्ट में हो तो 
दिल मुट्ठी में आना 
कहते हैं किसे, 
जानने लगी हूँ मैं। 

मेरे देर से घर 
लौटने पर 
तुम्हारी चिंता और गुस्से पर 
आक्रोश मेरा 
आज कर देता है मुझे शर्मिंदा,
जब अपनी बेटी के 
देर होने पर 
डूब जाती हूँ मैं चिंता में। 

बेटी के अनिष्ट की 
कल्पना मात्र से 
पसलियों में दिल 
नगाड़े-सा बजता है 
तब सुन न पाती थी 
तुम्हारे दिल की धाड़-धाड़
.....
मैं मुरख। 

महसूस कर सकती हूँ 
मेरी सफलता पर तुम्हारी खुशी आज, 
जब बेटी 
कामयाबी का शिखर चूमती है...

क्षमा कर दोगी माँ, 
मेरी भूलों को, 
क्योंकि अब मैं जान गई हूँ 
कि बच्चे कितने ही गलत हो 
माँ सदा ही क्षमा करती है

No comments: