Monday, January 9, 2012

SAKAT CHAUTH VRAT KATHA

व्रत कथा –एक बार राक्षसों से भयभीत होकर देवता भगवान शंकर की शरण में गए। उस समय भगवान शिव के पास भगवान कार्तिकेय तथा गणेश भी उपस्थित थे। शिवजी ने दोनों से पूछा - तुममे से कौन देवताओं के कष्ट समाप्त करेगा।

तब कार्तिकेय और गणेश दोनो ही जाने की इच्छा प्रकट की। ऐसा जान मुस्कारते हुए शिव ने दोनो बालको को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी - जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा, वही सबसे वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।

ऐसा सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। इधर गणेश जी के लिए चूहे के बल पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना असम्भव था। इसलिए वे सात बार माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए।

उधर रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिन्ह दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। तब कार्तिकेय जी ने स्वयं को विजेता बताया। इस पर गणेश ने भगवान शिव से कहा माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित है। इसलिए मैने आपकी सात बार परिक्रमा की है।

गणेश जी की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा गौरी-शंकर ने गणेश की भरपूर प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया की तीनों लोको में सर्व प्रथम तुम्हारी ही पूजा होगी।

तब शिव की आज्ञा पाकर गणेश जी ने देवताओं का संकट दूर किया। चन्द्रमा से गणेश जी के विजय का समाचार सुनकर भगवान शंकर ने चन्द्रमा को वरदान दिया कि चौथ के दिन चन्द्रमा पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री पुरुष इस तिथि पर चन्द्रमा का पूजन तथा चन्द्रमा को अर्घ्य देगा उसे एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

माना जाता है  तभी से पुत्रवती माताएँ पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।

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