Hello Friends.,
This is the creation of my Freind Rahul. He writes really good. I Love this poem of his very much. So thought of sharing with you all. Hope you all will like it.
अपने अन्दर के शायर को घेरता हूँ ,पकड़ लेता हूँ...आज
बड़ी ही मुश्किल से मिलता है मुझसे..!
कन्नी काट के ....निकल जाता है...बचके..!
मिजाज़ बहुत जुदा है...उसका..!
कैसे यूँ लिख लेते हो?
लब्जों के समुंदर मे डूबे रहते हो...कहाँ-कहाँ से ढून्ढ के लाते हो.
ये लाल-ओ-गौहर ?
पास आ के बैठ जाता है....मेरे पास..!
कहता है...राज़ की बात है...चलो आज बताता हूँ...!
.जो लिखता हूँ..वो मैं हूँ....पर लिखता कोई और है
वो जो होठों पे दर्द लिए ,सिमट के मुझमे बैठ जाता है
और कभी आखों में खुशियाँ ..सजाये,खड़ा हो जाता है...मेरे सामने..!
वो कोई और है....जो अक्सर रात को मेरे सिरहाने आकर....
मेरे कानों मे...फुसफुसाता है...और
वही अपनी मीठी सी ...अंगड़ाई लेकर..!
दिल मे उतरता जाता है...जीना-जीना..!
कतरा-कतरा हो के मेरी रगों मे घुल जाता है...!
मेरी उँगलियों की पोरों को...हरकत के लिए...उकसाता है..!
हाँ...मुझमे...ही बसता है वो...!
छुप के बैठ जाता है...फिरता रहता है...यहाँ-वहां..!
कभी बारिश की बूंदों मे बैठ जाता है....
कभी हवाओं में,कभी उजालों की कीरों पे सवार नज़र आता है....
और कभी अँधेरे के सन्नाटों में....जुगनुओं सा चमक जाता है...!
और...न जाने कब-कैसे??
वो वक़्त का लम्हा बनकर...!
मुझमें...उतरने को बेताब हो जाता है...!
उसकी बेताबी देख कर .....मेरा भीतर भी कुछ छटपटाता है..!
और इन छटपटाहटों की सिस्कारियां ...
मुझे लब्जों जैसी सुनाई पड़ने लगती हैं...!
गूंजने लगती हैं...मुझमें...!
और बहती हुई.....कुछ बा-तरतीब,कुछ बे-तरतीब...!
रोशनाई मे घुलती हुई...
उतरने लगती है....खाली सफहों पे....!
This is the creation of my Freind Rahul. He writes really good. I Love this poem of his very much. So thought of sharing with you all. Hope you all will like it.
अपने अन्दर के शायर को घेरता हूँ ,पकड़ लेता हूँ...आज
बड़ी ही मुश्किल से मिलता है मुझसे..!
कन्नी काट के ....निकल जाता है...बचके..!
मिजाज़ बहुत जुदा है...उसका..!
कैसे यूँ लिख लेते हो?
लब्जों के समुंदर मे डूबे रहते हो...कहाँ-कहाँ से ढून्ढ के लाते हो.
ये लाल-ओ-गौहर ?
पास आ के बैठ जाता है....मेरे पास..!
कहता है...राज़ की बात है...चलो आज बताता हूँ...!
.जो लिखता हूँ..वो मैं हूँ....पर लिखता कोई और है
वो जो होठों पे दर्द लिए ,सिमट के मुझमे बैठ जाता है
और कभी आखों में खुशियाँ ..सजाये,खड़ा हो जाता है...मेरे सामने..!
वो कोई और है....जो अक्सर रात को मेरे सिरहाने आकर....
मेरे कानों मे...फुसफुसाता है...और
वही अपनी मीठी सी ...अंगड़ाई लेकर..!
दिल मे उतरता जाता है...जीना-जीना..!
कतरा-कतरा हो के मेरी रगों मे घुल जाता है...!
मेरी उँगलियों की पोरों को...हरकत के लिए...उकसाता है..!
हाँ...मुझमे...ही बसता है वो...!
छुप के बैठ जाता है...फिरता रहता है...यहाँ-वहां..!
कभी बारिश की बूंदों मे बैठ जाता है....
कभी हवाओं में,कभी उजालों की कीरों पे सवार नज़र आता है....
और कभी अँधेरे के सन्नाटों में....जुगनुओं सा चमक जाता है...!
और...न जाने कब-कैसे??
वो वक़्त का लम्हा बनकर...!
मुझमें...उतरने को बेताब हो जाता है...!
उसकी बेताबी देख कर .....मेरा भीतर भी कुछ छटपटाता है..!
और इन छटपटाहटों की सिस्कारियां ...
मुझे लब्जों जैसी सुनाई पड़ने लगती हैं...!
गूंजने लगती हैं...मुझमें...!
और बहती हुई.....कुछ बा-तरतीब,कुछ बे-तरतीब...!
रोशनाई मे घुलती हुई...
उतरने लगती है....खाली सफहों पे....!
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