रहीम के दोहे
Here I wanted to share some of the well know doha of Rahim.
Abdul Rahim Khan-e-Khana (17 December 1556 – 1626) was a renowned composer during the time of Mughal emperor Akbar.He was one of the main nine ministers (Dewan) in his court, also known as the Navaratnas. Rahim is famous for hisHindi couplets and his books on Astrology
रहिमन धागा प्रेम का न तोड़े चटकाय
टूटे से न जूरे जुरे गाठ पर जाय
बड़े बड़ाई न करे बड़ों न बोले बोल
रहिमन हीरा कब कहें लाख टका मम मोल
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।
मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्यान।।
रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिये डार।
जहाँ काम आवे सुई कहा करै तलवार।।
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग।।
खीरा सिर से काटिये मलियत नमक बनाय।
रहिमन करूए मुखन को चहियत इहै सजाय।।
रहिमन विपदा हू भली जो थोरे दिन होय।
हित अनहित इह जगत में जान पड़े सब कोय।।
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