This is one of the most favouriate poem of mine composed by my dear Friend for me. Hope you will Love it:
वो कौफ का मंज़र लिए
एक बेहद ही संदली सी लड़की
अपने दमन के कांटे भी मुझको दिखया करती है
जिनके लिए ,उस्सका दिल रात के सन्नाटों में
अक्सर कुछ अनचाहे पलो को लेकर
डूबने लगता है
रौशनी के पैर बिना आहात किये
अंधेरों के दायरों में समां जाते हैं
याद -इ -दिल पे kai गुज़रे लम्हें
उगल देते हैं कुछ चुभती बातें
फिर वक़्त की बेशुमार यादें
बर्फ की तरेह पिघलने लगती हैं
और
रात के नीम अंधेरों में तनहा
वो ,उत्त के चल देती है
टूट के गिरये हुए
उन् बिखरे शीशों के टुकड़े हुए ख्वाबों पैर
कदम बे कदम
नींद में नंगे पो चलते हुए
उससके पंजों ke निशा ...खून से रंग जाते हैं
देखती रहती है मुड के ........वो निशा
jo उसके अहेड -इ -वफ़ा के सानी हैं .....!
और फिर कई समुंदर उसकी आखों में उतर आते हैं ........!
-राहुल (23.1.2010)
एक बेहद ही संदली सी लड़की
अपने दमन के कांटे भी मुझको दिखया करती है
जिनके लिए ,उस्सका दिल रात के सन्नाटों में
अक्सर कुछ अनचाहे पलो को लेकर
डूबने लगता है
रौशनी के पैर बिना आहात किये
अंधेरों के दायरों में समां जाते हैं
याद -इ -दिल पे kai गुज़रे लम्हें
उगल देते हैं कुछ चुभती बातें
फिर वक़्त की बेशुमार यादें
बर्फ की तरेह पिघलने लगती हैं
और
रात के नीम अंधेरों में तनहा
वो ,उत्त के चल देती है
टूट के गिरये हुए
उन् बिखरे शीशों के टुकड़े हुए ख्वाबों पैर
कदम बे कदम
नींद में नंगे पो चलते हुए
उससके पंजों ke निशा ...खून से रंग जाते हैं
देखती रहती है मुड के ........वो निशा
jo उसके अहेड -इ -वफ़ा के सानी हैं .....!
और फिर कई समुंदर उसकी आखों में उतर आते हैं ........!
-राहुल (23.1.2010)
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